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अगस्त, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अरुण कमल की कविताएँ

  अरुण कमल की कविताएँ अरुण कमल ( चित्र: साभार, कृष्ण समिद्ध )   पड़ता रहे नाँद में सानी फिर कैसा ग़म कैसी बंदी बिजली बत्ती गैस सिलिन्डर और टेंट में   नगदी दिन दुपहर हो शाम रात हो खाना सोना यही काम हो घर में सारे सुख के साधन बाहर चाहे पड़ा लाम हो जिसको मरना है वो मरेगा भाग्य में जिसके जैसा कोई खटमल वाइरस कोई     कोई बनेगा भैंसा हर सुखाड़ में बाढ़ आग में हर आफ़त में मौजाँ बंदी हो नकबंदी हो नटबंदी हो या मंदी मौजाँ भौजी मौजाँ नन्दी— *** लिख लिख कर क्यों काट रहे हो खोद ताल क्यों         पाट रहे   हो बंद नगर घर             बंद    हवाएँ क्यों खिड़की से झाँक रहे       हो ऊपर बादल           नीचे      पानी क्यों मुखड़े को   ढाँक         रहे हो   बाहर निकलो         पिट   जाओगे खोलो मुँह तो         कट    जाओगे सबसे दूरी               बना के रखो मुँह को हरदम          बाँध के रखो कोई दुश्मन             ढ़ूँढ़ निकालो कोई भेंड़ी            मूँड़      निकालो मानो मेरी                  तर जाओगे जेबी झोली              और तिजोरी माल मता            

एक आम आदमी की डायरी-2- संजय कुमार कुन्दन

           एक आम आदमी की डायरी -2 संजय कुमार कुन्दन आम आदमी वादा नहीं निभा पाता. कोशिश ज़रुर करता है. जब डायरी शुरू की थी तो वादा किया था कि नियमित रहूँगा लेकिन इतने दिन हो गए इस डायरी के पास आए. थोड़ी शर्मिन्दगी तो हो रही है लेकिन ख़ास आदमी ही कौन वादा निभा पाता है. बल्कि सारी सुविधा रहते हुए वह वादा नहीं ही निभाता है. बड़े लोगों ने बड़े-बड़े वादे किए लेकिन बाद में नए वादे करने पड़े और पुराने वादे चले गए वक़्त के डस्टबिन में. ख़ास लोगों का डस्टबिन पुराने वादों से भरा होता है और ज़ाहिर है ख़ास लोग डस्टबिन जैसी निकृष्ट चीज़ की ओर झाँकेंगे भी क्यों? आम लोगों के पास डस्टबिन कहाँ होता है. उनके वादे तो उनके सामने टूटे हुए फ़र्श पर बिखरे रहते हैं जिनसे उनकी नज़रें दो-चार होती रहती हैं और वे लगातार शर्मिन्दा होते रहते हैं. फिर एक दो को निभाने की कोशिश भी करते हैं. हमेशा एहसासे-कमतरी, एक हीन भाव में डूबे रहते हैं वे. हाँ, तो यह डायरी लेखन का वायदा अपने आप से. पिछले पन्ने में मैंने घपड़-शपड़ ढंग से यह साबित कर दिया था कि एक आम आदमी भी डायरी लिख सकता है. डायरी क्या है एक आत्मालाप है, एक ख़ुदकलामी. मुझे तो ल

कमलेश की कहानी-- प्रेम अगिन में

  कमलेश            प्रेम अगिन में   टन-टन-टन। घंटी की आवाज से तंद्रा टूटी छोटन तिवारी की। बाप रे। शाम में मंदिर में आरती शुरू हो गई और उन्हें पता भी नहीं चला। तीन घंटे कैसे कट गये। अब तो दोनों जगह मार पड़ने की पूरी आशंका। गुरुजी पहले तो घर पर बतायेंगे कि छोटन तिवारी दोपहर के बाद मंदिर आये ही नहीं। मतलब घर पहुंचते ही बाबूजी का पहला सवाल- दोपहर के बाद मंदिर से कहां गायब हो गया ? इसके बाद जो भी हाथ में मिलेगा उससे जमकर थुराई। फिर कल जब वह मंदिर पहुंचेंगे तो गुरुजी कुटम्मस करेंगे। कोई बात नहीं। मार खायेंगे तो खायेंगे लेकिन आज का आनन्द हाथ से कैसे जाने देते। एक बजे वह यहां आये थे और शाम के चार बज गये। लेकिन लग यही रहा था कि वह थोड़ी ही देर पहले तो आये थे। वह तो मानो दूसरे ही लोक में थे। पंचायत भवन की खिड़की के उस पार का दृश्य देखने के लिए तो उन्होंने कितने दिन इंतजार किया। पूरे खरमास एक-एक दिन गिना। लगन आया तो लगा जैसे उनकी ही शादी होने वाली हो। इसे ऐसे ही कैसे छोड़ देते। पंचायत भवन में ही ठहरती है गांव आने वाली कोई भी बारात और इसी के एक कमरे में रुकती है नाच पार्टी। नाच पार्टी अपने स