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ग़ज़ल Public Friends Only Me Custom Family Saakshar Bharat See all lists... government of bihar Patna, India Area Go Back तुम झूठ जो बोलो तो चलो झूठ ही बोलो सच से कहो के हाथ मलो , झूठ ही बोलो घर से तो मियाँ काम से निकलोगे ही बाहर अब क्या करोगे , सबसे मिलो, झूठ ही बोलो अब और कितने फ़ाक़े भला सच के लिए हों बस मक़्र के टुकड़ों पे पलो , झूठ  ही  बोलो वो क्या सुफ़ैद गाडी पे ज़न्नाटे से निकला है  दोस्त तुम्हारा वो ? लो, झूठ ही  बोलो कुछ रस्मो-राह भी तो निभाना ज़रा सीखो रक्खो न फोन, कह दो हलो, झूठ ही बोलो महफ़िल में हो तो साहिबे-महफ़िल भी तुम्हीं हो सबकी न सुनो,  ख़ुद को छलो , झूठ  ही बोलो कह दो ये सबसे घर पे अहम काम हैं 'कुंदन' जी भर गया तो उठ के चलो , झूठ ही बोलो ***************************
ग़ज़ल उदास कब तलक बैठेंगे अब उठें जानाँ इन उलझनों से कहीं दूर अब चलें जानाँ  ख़ुशी का ग़म में बदलना भी सानेहा है अजब बदलती रुत  के  फ़रेबों को  हम सहें  जानाँ नए लिबास की चाहत में बरहना हैं शजर इस इंतज़ार में क्या अब्द तक रुकें जानाँ कहो तो अपने सुख़न को समेट लें हम भी सुनो तो अपनी कहानी भी हम कहें जानाँ वो फ़ासले थे मगर दूरियाँ  ज़रा भी न थीं ये  कैसी  क़ुर्बतें  सदियाँ  हैं बीच में जानाँ ये जलती-बुझती हुई आरज़ू का क़िस्सा है ज़रा  पड़ाव  पे  ठहरें  ,  ज़रा  चलें जानाँ जो जा रहे हैं तो लौटेंगे नहीं 'कुन्दन जी' बग़ैर उनके भी रहना तो सीख लें जानाँ  *********************
ग़ज़ल हम हाफ़िज़े का नया खेल इक रचाएँगे करेंगे याद तुम्हें , तुमको ही भुलाएंगे  तेरे जहाँ में दिखाएँ तो क्या दिखाएँ हम नज़र वो  पैदा करें  तब  तो  देख पाएँगे  कभी-कभी  जो  इशारे दिए हैं  फ़ितरत  ने समझ लें उनको तो दुनिया को भूल जाएँगे  बहुत कठिन तो नहीं है हयात में चलना बहुत संभल के चलेंगे  तो  डगमगाएंगे  ये मिलना और बिछड़ना है इत्तफ़ाक़ मगर ज़रा  सा  वक़्ते-जुदाई   में   ठहर   जाएँगे  कभी जो रोने को ढूँढोगे मोतबर शाना रहेंगे  दूर  मगर  तुमको  याद आएँगे  जले हैं ख़ूब मगर कौन मान ले 'कुन्दन' हम और अपनी सदाक़त भी क्या बताएँगे  ***************************
ग़ज़ल क्या क्या भेस बदलते हैं ये,क्या क्या ढब दिखलाए हैं औरों  को   धोखा  देने  में  ख़ुद  से  धोखा   खाए  हैं    रोशनी और अँधेरे का ये फ़र्क़ समझना मुश्किल है अन्दर सदियों का अन्धेरा बाहर दिए जलाए हैं  वक़्त ही ज़ख्मों को भरता है बात सरासर झूठी है वक़्त ने लम्हों के रहज़न से बस डाके डलवाए हैं  कुछ कुछ ग़म तो रहते ही हैं, कुछ कुछ खुशियाँ आती हैं अपने  घर   के   इन   दोनों   ने   फेरे   ख़ूब    लगाए  हैं  दस्तक और दरवाज़े का ये रिश्ता उल्टा-पल्टा है  बोलो, कितने दरवाज़े इन दस्तक ने खुलवाए हैं  दीवाना तो  दीवाना  है , उसपे  हँसो  ,पत्थर फेंको सोच-समझकर इश्क़ ने इसमें घाटे सिर्फ़ उठाए हैं  सारी उम्र जहाँ की रस्मों हम तो गुनहगर तेरे रहे 'कुन्दन' की आज़ाद तबीयत ने बंधन खुलवाए हैं  **************************
ग़ज़ल मेरी  थकान  पे रखती है हाथ नन्ही परी अजब सुकून को लाती है साथ नन्ही परी    कई दुखों  का  है  ठहराव  ज़िन्दगी  जैसे  तमाम ख़ुशियों का जैसे सबात नन्ही परी  मेरी  हथेली  में रखकर वो अपनी  मुट्ठी को जैसे कर लेती है  महफ़ूज़  रात  नन्ही परी   फ़ना की गलियों में फिरता हूँ शाम ढलने तक घर पे मिल जाती है मिस्ले-हयात नन्ही परी  तिफ़्ल बन जाता हूँ जैसे मैं उसकी सोहबत में बुज़ुर्ग  जैसी  जो  रखती  है  बात  नन्ही परी  मेरा ही अक्स है पर कितनी है जुदा मुझसे मैं  तेज़  दोपहर  , है  चाँद  रात नन्ही परी  महक  उठा  है  मेरे  दिल का ख़राबाँ  'कुन्दन' जब से दाख़िल हुई सन्दल की ज़ात नन्ही परी  *************