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यतीश कुमार की कविताएँ

  यतीश कुमार देह , बाज़ार और रोशनी - 1 घर के कोने में धूप   कुछ धुँधली सी पड़ रही है   रंगीन लिबास में   मुस्कुराहट   नक़ाब ओढ़े घूम रही है     उस गली में पहुँचते ही वसंत पीला से गुलाबी हो जाता है इंद्रधनुषी सतरंगी किरणें उदास एकरंगी हो जाती हैं   वहाँ से गुज़रती हवा थोड़ी-सी नमदार थोड़ी-सी शुष्क   नमक से लदी भारीपन के साथ हर जगह पसर जाती है हवा में सिर्फ़ देह का पसीना तैरता है     दर्द और उबासी में घुलती हँसी   ख़ूब ज़ोर से ठहाके मारती है     सब रूप बदल कर   मिलतेहैं वहाँ   सिर्फ मिट्टी जानती है बदन पिघलने का सोंधापन और बर्दाश्त कर लेती है पसीने की दुर्गन्ध     मिट्टियों के ढूह पर बालू से घर बनाता है   एक आठ साल का बच्चा और ठीक उसी समय एक बारह साल की लड़की कुछ अश्लील पन्नों को फाड़ती है और लिखती है आज़ादी के गीत पंद्रह अगस्त को बीते   अभी कुछ दिन ही हुए हैं         *** देह , बाज़ार और रोशनी - 2  वक़्त से पहले   अँधेरा दस्तक देता है शाम होते - होते सभी खुद को पेट के अंधेरे में गर्त कर लेते ह

कविता की कहानी- सिंहवाहिनी

  कविता                 सिंहवाहिनी वह एक श्यामलवर्णी क्रमशः अधेड़ावस्था की ओर अग्रसर स्त्री थी और वे एक गौरवर्ण अधेड़ पुरुष। उसकी उम्र चालीस के आसपास और वे पचपन के करीब-करीब।चौंकिए नहीं , उम्र के इस अंतर पर तो कदापि नहीं। ऐसी शादियाँ उस समय के समाज में सामान्य ही मानी जाती थीं। और अब भी तो प्रबुद्ध , बुद्धिजीवी और संपन्न लोग रचाते ही हैं ऐसे विवाह और वह भी प्रेम विवाह... अब इन विवाहों में प्रेम की जगह कोई औरशब्द चेंप कर खुश न हो लें आप। वह समय उससे एक डेढ़ दशक पहले का था जब हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार कहे जानेवाले अभिनेता की फिल्में धड़ाधड़ फ्लॉप हुई जा रही थीं... या कि वह समय जब स्मितापाटिल और शबाना आजमी जैसी सशक्त अभिनेत्रियाँ भी कला फिल्मों का रुख छोड़ व्यावसायिक फिल्मों में पराश्रित और सताई हुई स्त्रियों का किरदार करने को तैयार हो चुकी थीं... और फिर उसके बाद क्रमशः अपने जीवन में भी विवाहित पुरुषों की दूसरी पत्नी बनने को भी। ... ठीक-ठीक कहें तो यह वही समय था जब आपातकाल के बाद इंदिरा गांधी चुनाव हार गई थीं और जनता पार्टी सत्तारूढ़ हो चुकी थी। खैर छोड़िए अब समय की बात... उसके