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नवंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
ग़ज़ल  मेरी नज़र ही मुझसे कोई चाल चल  गई  पहचानता था जिसको वो   सूरत बदल गई  नन्हा-सा  वो एहसास के जिसने मचाई धूम  बच्ची थी एक गुलमोहर छूने उछल  गई    वो जिसके इंतज़ार में ख़ुद को भी खो दिया  वो इक घड़ी जो हाथ में आई ,फिसल गई   अब कुछ तो तवक्को भी नहीं है मेरे दिल में  और कुछ तो इंतज़ार की साअत निकल गई  खोने का सिलसिला ही रहा है  तमाम  उम्र  ये और बात ,ज़िन्दगी  यूँ  ही बहल  गई   कुछ बात  बेसबब भी हुआ करती है  अक्सर  रोशन हुए बिना ही वो शम्म पिघल  गई  एहसास हुआ करता है हरदम यही 'कुंदन' वो राहगुज़र जिसपे क़दम थे ,बदल  गई  ***************************