ग़ज़ल कुछ तो मासूमियत ,जवानी कुछ बात लगती है ये पुरानी कुछ है ज़बरदस्त इक कशिश इसमें माना दुनिया है आनी-जानी कुछ हाकिमे-शह्र, तू ख़ुदा तो नहीं सोच, तेरा भी होगा सानी कुछ आपकी बज़्म तो संजीदा है रुसवा करती है शादमानी कुछ इस क़दर क्यूं ठहर गया है वक़्त देख ,लम्हे में है रवानी कुछ आज का खून कल ज़िया देगा गरचे तुम लोगे ज़िन्दगानी कुछ जब भी पूछा है हाल ऐ 'कुंदन' छेड़ देते हो तुम कहानी कुछ **********************
यह ब्लॉग बस ज़हन में जो आ जाए उसे निकाल बाहर करने के लिए है .कोई 'गंभीर विमर्श ','सार्थक बहस 'के लिए नहीं क्योंकि 'हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन ..'