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दिल्ली में दोस्तों की महफ़िल और नानक सिंह




दिल्ली आया हुआ था एक मीटिंग के लिए .समीक्षा बैठकों में उच्चाधिकारी  जो आतंक तोड़ते हैं सर पर वह ख़त्म हुआ.वातानुकूलित हौल में बिठाकर और अच्छे केटरर्स के द्वारा स्वादिष्ट शाकाहारी और मांसाहारी भोजन परोस सारी लज़्ज़त को आंकड़ों के गुनाह में तब्दील कर देतें हैं ,उसी गुनाह बेलज्ज़त के बाद बड़े साहब ने सबको ज़लील कर,अपनी अना को मुतमइन कर और सारे हिन्दुस्तान के ठेके को पुख्ता कर विजयी भाव से दोपहर को ही दिल्ली की भीड़ में मुक्त कर दिया.
घबड़ाए हुए मन से कुमार मुकुल को  मोबाइल दागा.नेटवर्क साहब नेटवर्क.बात न हो सकी तो धर्मेन्द्र सुशांत था.इंडिया हैबिटेट सेंटर से मंदी हाउस पहुँच गया और नेपाली दूतावास के बाहर पेवमेंट पर फ़ाइल रख उसपर बैठकर धर्मेन्द्र सुशांत का इंतज़ार करने लगा.फिर उकताकर संगीत भारती के सामने खड़ा हो गया.विचित्र वेशभूषा में लड़के-लडकियां ,अधेड़ -बुज़ुर्ग,अलग-अलग शेप साईज के-ज़्यादातर खाए-पीये और कहीं और खाने-पीने की ख़्वाहिश रखनेवाले चर्बी की बहुतायत से भरे लोग.फिर धर्मेन्द्र सुशांत आया भटकता हुआ और हम साहित्य अकेडमी चले गए वातानुकूलित किताब घर में बैठने.वहाँ साहित्य की बड़ी हस्तियाँ किताब खरीद रही थीं.एक बड़ी हस्ती ने (जो हिन्दी की एक बहुत ही बड़ी हस्ती के छोटे भाई थे )दूसरी बड़ी हस्ती को जो अदनान सामी के इलाज से पहलेवाले मोटापे को धारण किये हुए थे,अरुणप्रकाश की एक किताब दिखलाते हुए कहा,"यह गधा साहित्य अकादमी में घुस आया ."मुझे हाथी का गधे पर कमेन्ट शेअर करना अच्छा नहीं लगा.
मुझे फ्री का वातानुकूलित में बैठना अच्छा नहीं लग रहा था  सो मैंने किताबें देखनी शुरू की और फ़िराक़ की 'इन्तखाबे कलाम' और नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती की 'नंगा राजा' ख़रीद ली.फिर हम आकाशवाणी आये सुधीर सुमन को उठाने.हम तीनों ने खाने-पीने की कुछ औपचारिकताएं कीं और सुधीर सुमन हमें बग़ल के एक गुमनाम पार्क ले गए जहां मैंने दोनों को 'पाखी' में प्रकाशित अपनी कहानी 'कच्चे आम की महक' सुनाई.मैं थोड़ा जाने को हुआ तो दोनों ने कहा ,मंगलवार को मंडी हाउस के पास  दोस्त-यार जुटते हैं एकाध घंटे ठहर जाऊं .
फिर वही संगीत भारती के सामनेवाली जगह. फिर तो पंकज कुमार चौधरी ,प्रेम भारद्वाज ,अरविन्द शेष ,मृत्युंजय ,देवेन्द्र कुमार देवेश ,उमाशंकर सिंह और एक-दो नए लड़कों से मुलाक़ात हो गयी .प्रेम भारद्वाज के साथ थे एक नीरज जी.नीरज जी ही मुख्य आकर्षण थे.छुब्ध(सही वर्तनी नहीं टाइप हो सकी),बेचैन ,उकताए हुए .उनके कथनानुसार साहित्य की हर नामवर हस्ती के सताए और लड़कियों के षड्यंत्र के शिकार.कविताएँ भी थीं उनके पास --कविताएँ यानी दिल की भड़ांस .लगता था के वे कुछ असामान्य हो रहे थे.यार लोग बड़े क़रीने से,बड़े सलीक़े से उनका मज़ाक़ ही उड़ा रहे थे .मुझे हमदर्दी हुई.मैंने कहा,आपके जीवन की दो त्रासदियाँ हैं --बड़े लोग और लडकियां .तो बड़े लोगों को delete कर recycle bin में डालकर गाँव वापस लौटिये और मॉडर्न लड़कियों के अतीत को भुलाकर किसी ग्रामीण लड़की से ब्याह रचाइए ,बच्चे पैदा कीजिये और उनके बचपने में मगन रहिये.मैंने बड़ी बेबाकी से कहा था लेकिन शायद उन्हें अच्छा लगा और वे कुछ संतुलित दिखे.मैंने अपनी नज्में सुनाईं और साहिर और फ़ैज़ की नज्में भी सुनाईं .फिर मदन कश्यप मेरे लिए अपरिचित एक सज्जन के साथ आये .ये ब्रजेन्द्र त्रिपाठी थे .घास पर बैठे-बैठे हमने बहुत सारी चाय पी ,शायद अरविन्द शेष के सौजन्य से और अंततः शमीम फारुखी के इस शेर के साथ के "अपने सब मंज़र लुटाकर शाम रुखसत हो गयी/तुम भी वापस लौट जाओ हम भी अपने घर चलें /"सबसे विदा ली. सुधीर सुमन और धर्मेन्द्र सुशांत बहुत देर तक मेरे लिए ऑटो ढूंढ़ते रहे ,आख़िरकार ऑटो मिली और मैं वापस आश्रम ,जहां मैं ठहरा हुआ हूँ ,पहुँच गया. 
हाँ,यह तो भूल गया.नानक सिंह मिला था --ऑटो ड्राइवर .जब सुधीर सुमन को लेकर हम उसके ऑटो पर संगीत भारती आये. बड़ा दिलबाश आदमी था.उसने हमें चाय ऑफर की.जब हमलोगों ने ही उसे चाय पिला दी तो वह हमें मट्ठी खिलाने की ज़िद करने लगा.जितना उसके पास था वह खुश था .लगता था ,उसे न बड़े आदमियों से होड़ थी ,न लड़कियों की लालसा ,न गंभीर और सार्थक बहस करने की चाह .
मैं खुश हूँ के सारे दोस्तों से मुलाक़ात हो गयी लेकिन सच कहूं तो न जाने क्यों मुझे नानक सिंह की बेलौस मुस्कराहट ज़्यादा याद आ रही है.
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