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जून, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं
इल्तुतमिश  की क़ब्र और पटना में ज़मीन का संकट                                                                                                                                                                                                                                                                               ...

२५ अगस्त २००१ की डायरी का एक पन्ना

रात के दो बजकर पांच मिनट हो रहे हैं.मैं हजारीबाग बस-स्टैंड  के एक छोटे से होटल में बैठा हूँ .क्यों बैठा हूँ दो समोसे खाकर और  एक कप चाय जमना के साथ पीकर .जमना राम २२साल का रिक्शावाला  जो पास के हुरहुरू गाँव में रहता है और एक बजे बस से उतरकर जिससे  मुलाक़ात हुई .जमना अभी निकल गया है सवारी की तलाश में ,कह गया  है के तीन बजे आ जाएगा जब उसके अनुसार सुबह होने लगेगी और वह  मुझे safely रेडियो-स्टेशन तक पहुंचा सकेगा जहां मुझे पंकज मित्रा से  मिलना है. तो क्यों बैठा हूँ मैं यहाँ ?६ बजे जमशेदपुर से चला था.सोचा था,ग्यारह बजे  तक पहुँच जाऊंगा और पंकज के पास चला जाऊंगा और सो जाऊंगा.लेकिन  यह किस्मत को मंज़ूर नहीं था .सवा बजे रात में सोचा ,क्यों ग़रीब को रात  में ख़ामख्वाह परेशान करूँ जबके वह 'family' के साथ है.फैमिली अजीब शब्द  है आजकल .फैमिली या परिवार पत्नी का पर्यायवाची हो गया है.'फैमिली साथ  रख रहे हैं आजकल ,' 'देखिये ,ठहरूंगा नहीं ,फैमिली रिक्शे पर है ', 'डाक्टर के  पास जा रहा हूँ ,फैमिली को जुकाम हो गया है ', 'आदमी तो अच्छा है ...

मरना बिना समझे

व्यस्त सड़क पर चलते हुए  मैं देखती हूँ  कुचला हुआ जानवर  कोई तेज़ रफ़्तार गाड़ी चढ़ गयी होगी उसपर  भागने और बचने की मोहलत  ही नहीं मिली होगी उसे  और बिना कुछ समझे  मर गया होगा  एक गाड़ी रोज़ आती है  हर आदमी के जीवन की सड़क पर  कुचलती हुई गुज़र जाती है उसे  और वह बिना समझे नहीं मरता  बस तलाश है उस गाड़ी की  जिससे कुचले जाने के पहले  मोहलत ही नहीं मिलती समझने की  *****************  प्रतिभा वर्मा   

अपने पिछले हमसफर की कोई तो पहचान रख

             ग़ज़ल (आलम खुर्शीद) अपने पिछले हमसफ़र की कोई तो पहचान रख कुछ नहीं तो मेज़ पर काँटों भरा गुलदान रख तपते रेगिस्तान का लंबा सफ़र कट जायेगा अपनी आँखों में मगर छोटा सा नखलिस्तान रख घर से बाहर की फ़िज़ा का कुछ तो अंदाज़ा लगे खोल कर सारे दरीचे और रौशनदान रख नंगे पांव घास पर चलने में भी इक लुत्फ़ है ओस के क़तरों से मत खुद को कभी अनजान रख दोस्ती, नेकी , शराफ़त, आदमियत और वफ़ा अपनी छोटी नाव में इतना भी मत सामान रख सरकशी पे आ गई हैं मेरी लहरें ए खुदा ! मैं समुन्दर हूँ , मेरे सीने में भी चट्टान रख _______________________________________ नखलिस्तान = हरियाली , रेगिस्तान में नज़र आने वाला हरा भरा हिस्सा सरकशी = नाफरमानी , बगावत

अँगुल भर की गाँठ

ओल के पौधे डीह पर  लहलहाने लगे थे  हरे-हरे पत्ते देख रहे थे  चारों तरफ  छोटी-छोटी अँगुल भर की गाँठ  लगाई थी थोड़ी -थोड़ी दूर पर  यही कोई साल-दो-साल पहले  और आज  तीन-चार किलो का बड़ा ओल  निकाला गया था  एक गाँठ कितनी बड़ी हो गयी  बढ़कर धीरे-धीरे  ठीक इसी तरह  बहुत पहले मन पर  अकेलेपन की  एक छोटी गांठ पड़ी थी  माँ आँचल पकड़  पीछे चलते  हुए    ******************

धरती का नमक

आज सुबह, कहीं से भी अब तक प्रशंसा नहीं मिलने  की वजह से बाइबिल का सहारा ले लिया .'Thy are   the salt of earth'-तुम धरती का नमक हो .और खुश  हो रहा था के मेरे बिना इस धरती में स्वाद ही नहीं है.   इसी बीच  प्रतिभा की ललकार आयी,'जाओ ,जाकर नमक  ले आओ ,घर में एक दाना भी नमक नहीं .'कमाल का इत्तिफ़ाक़ था .धरती का नमक और टाटा नमक . जल्दी-जल्दी नीचे उतरा और नीचे वाली दूकान से शुद्ध  iodized नमक ले आया और फिर बैठ कर सोचने लगा .नमक iodized  नहीं हो तो गले में घेघ हो सकता है .और  iodized नमक  ख़ास कम्पनियां बनाती हैं .वैसे गांधी जी ने भी नमक बनाया था .   मैं सोचने लगा .क्या बात है के बाइबिल के अनुसार धरती का  नमक होने पर भी मुझे recognition नहीं मिलता.गाड़ी,मकान , पत्र-पत्रिकाओं में लगातार छपना,शोहरत ,पुरस्कार ,बैंक बैलेंस , कुछ भी नहीं .लेकिन हूँ तो  धरती का नमक .यहोवा नें कहा है साहब . लेकिन यहोवा चालाकी कर गए .आदमी धरती का  iodized नमक  नहीं सिर्फ नमक है .जबतक वह किसी कंपनी के हाथों परिष्कृत नहीं  हो जाता ...

आजकल यूँ ही....

आजकल यूँ ही सोचता रहता हूँ :-- * आदमी भेड़िये की तरह क्यों नहीं दिखते ? *मेरा एक पालतू कुत्ता पागल हो गया था ,रोटी  खिलाता था तो हाथ में काट लेता था .क्या वह  ज़्यादा सोशल हो गया था ?   *क्या ख़्वाब की बुनियाद हक़ीक़त होती है ? *हर सिंहासन पर एक नक़ल क्यों बैठी होती है ? *लिखना ज़्यादा ज़रूरी है के छपना ? फेसबुक ,ब्लॉग वगैरह से फ़ायदा यह है के जो भी  आप सोचें सबको पढ़वा सकते हैं . ****************************

बस यूं ही

मन है तो बेचैन होगा.इसका उलट यह भी हो सकता है के मन है तो शांत भी होगा . शायरों और हयावालों का मन तो बेचैन होगा ही और संन्यासियों और बेशर्मों का  मन शांत होगा ही .मेरा मन थोड़ा बेचैन है --संन्यासी  तो नहीं हूँ लेकिनशायर हूँ के  नहीं यह तो पढ़नेवाले तै करेंगे और हया के बारे में इतना ही कहना है के 'मैं आस-पास  के लोगों- सा हो नहीं सकता/अभी भी आँख में लगता है कुछ तो पानी है /' अब ये नहीं  पूछिए के बक-बक क्यों कर रहा हूँ .क्योंकि मुझे बेसबब कुछ कहने ,कुछ करने  में   मज़ा  आता है.सार्थक बहसों में मैं बहुत यक़ीन नहीं करता .हिंदी के एक बड़े कवि मुझे non  -serious समझते थे और मुझे उनके इस निहायत गंभीर approach पर बड़ा मज़ा  आता था .जब वे अफ्रिका अमेरिका के मसलों पर बात करते थे मैं परवल और कद्दू  की बात करने लगता था .अब आप इसे जो कहें .मैं बेचैन हूँ और टाइप कर रहा हूँ . यह और बात के इस बेसबब -सी बात को पोस्ट कर आपको भी बेचैन करूंगा.  *****************************

देखना ,रात को ......

देखना, रात को/ ख़्वाब में  जाने-पहचाने-से/ कुछ तो चेहरे मिलें / देखना, रात को/ नींद की जुस्तजू में भटकते हुए/ ख़ुश्क साए मिलें/ देखना,रात की इस ख़मोशी के/ दरिया में गुम चंद आवाजों के / कुछ शिकस्ता(१) सफ़ीने(२) मिलें/ देखना,रात की छातियों से / टपकती हुईं शीर(३) की ऐसी बूँदें मिलें / जिनकी ख़ातिर तरसता हुआ/ कोई मासूम लब(४)/ अपने सीने में खुश्की सजाये हुए / कब फ़ना हो गया/ देखना,रात के स्याह और बेकराँ(५)/ इस समंदर में / कितने ही असरार(६) हों/ राज़ हों सैकड़ों / देखना,रात के इस शबिस्तान(७) में/ ख़्वाब की माशूक़ा/ अपने आशिक़ की हो मुन्तज़िर/ और सूरज की चौखट पे / दम तोड़ दे / देखना,देखना ,/ रात काला घुमड़ता हुआ / अब्र(८)  है / देखना,रात में / मखमली-सी कोई इक / बुनावट भी है/ देखना ,रात के हैं हज़ारों तिलिस्म / जिनको हातिम कोई आए/ और तोड़ दे / देखना,रात में / कितनी गिरहें हैं / ग़ालिब के अशआर-सी/ जिनको खोलो तो / दीवान(९) तहरीर(10) हो / देखना, रात को / शायद ऐसा ही हो / एक ठंढी-सी ,शीतल-सी / कोई हवा/ आ के खिड़की के रस्ते से / हौले ज़रा / चूम ले तेरा चेहरा बड़े प्यार से / और लड़त...

एक था राजा ,एक थी रानी .......

आज सुबह अपनी छोटी-सी बेटी संदली को छत पर ले गया.कहानी सुना -सुना कर बिस्किट खिलाने.कहानी शुरू की -'एक था राजा,एक थी रानी /दोनों मर गए ख़तम कहानी .'संदली ने टोका-'लेकिन पापा,लाजा तो मलता नहीं है .लाजा लानी तो कहानी छुनाते हैं .'मैं चौंक गया.इतनी छोटी-सी लडकी को कैसे पता चल गया के राजा मरता नहीं . वाक़ई,राजा तो मरता नहीं .राजा का शरीर अगर मर भी जाए तो कहते हैं 'The king is dead,long live the king'और राजा तो कभी मरा नहीं .साथ ही वह तब से अबतक रियाया को कहानी ही सुना रहा है .तरक्क़ी की परी की कहानी ,विरोधी aspiring ,प्रतिद्वंदी राजाओं यानी जिन्नों की कहानी --चन्द्रकान्ता संतति ,अलिफ़ लैला ,हातिमताई की लुभावनी कहानियां और रियाया इस बैताल को सर पर रखे प्रेम और चाव से कहानियां सुन रही है.कहानियों का आकर्षण इतना के रियाया को भूख भी नहीं लगती.नंगी भी रहती है और बेघरबार भी . तो सच में ,लाजा मलता नहीं औल कहानी छुनाता रहता है .
ग़ज़ल ये उम्र यूं ही गुज़र गयी है कहाँ रखा है हिसाब अपना  किसी ने पूछा के हाल क्या है यही रहा है जवाब अपना  कोई चाहे जहां से पढ़ ले  कोई भी बंदिश कहीं  नहीं   है  खुली हुई है किताबे -हस्ती ,खुला हुआ है ये बाब(1)अपना  जो देखते हैं वही लिखें क्या के खुद ही अपने खिलाफ़ जाएँ  हक़ीक़तें तो नहीं हैं वैसी के जैसा रौशन था ख़्वाब अपना  अगरचे बैठा हूँ अपने घर में, बरूनी(2) मुल्कों में बिक रहा हूँ  तिलिस्मी ताजिर(3) का दौर है ये के कैसे रक्खूं हिसाब अपना  जो मेरे दिल के क़रीबतर है मेरे मुखालिफ़(4) वही बशर(5) है  वो इसकी गर्मी से जल न जाए कहाँ रखूँ इज़्तराब(6)अपना   बहुत-ही हल्की सी रौशनी ये अँधेरे दिल में उतर रही है ज़रा सा चटखा अना(7) का पत्थर ,ज़रा हटा ये नक़ाब अपना   भला क्यूं ऐसे लरज़(8)रहा हूँ जो हुक्मे-हिजरत(9) हुआ है 'कुंदन' कहाँ गयी वो पुरानी आदत , कहाँ है खानाखराब अपना   ************************************** १.अध्याय २.बाहरी ३.जादुई व्यापारी ४.विरुद्ध ५.व्यक्ति ६बेचैनी ७.अहम् भाव  ८.काँप ९.पलाय...

भ्रष्टाचार के खिलाफ़

अब आप ये न पूछें के मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ़ क्यों लिखने बैठ गया. दरअसल मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ़ नहीं बल्कि भ्रष्टाचारियों के पक्ष में लिखने जा रहा हूँ .भ्रष्टाचारियों ने इस देश के विकास और रौनक़ के लिए जितना किया उसके लिए हमें एहसानमंद होना चाहिए. सोचिये ,सड़क पर इतनी अच्छी-अच्छी गाड़ियां ,इतने ख़ूबसूरत मकान ,महंगे होटल , बड़े -बड़े कार्यक्रमों के समृद्ध दर्शक क्या ईमानदार लोगों के बल पर है. अगर देश में सिर्फ़ ईमानदार रहेंगे तो कैसी फटेहाली की तस्वीर नज़र आयेगी.अंतर्राष्ट्रीय मंच पर हमारी भद्द उड़ जायेगी.हम कहीं के नहीं रहेंगे और विदेशी भीख भी उतनी तगड़ी हमें मिलेगी नहीं .क्योंकि सड़क के भिखारी को आठ आने ,एक रुपये की भीख मिलती है जबकि सूटेड -बूटेड भिखारी प्लेन से जाकर करोड़ों की भीख ले आते हैं. आप ख़ुद सोचिये, एक सूखी अधखाई लड़की आपको अच्छी लगती है के खाई-पियी गदबदी लड़की ,एक आँखों में भूख सजाए मरियल जवान या एक सिक्स पैक वाला स्वस्थ सुन्दर नौजवान .समृद्धि कितनी आकर्षक होती है .चियर गर्ल्स कितनी लुभावनी, कई हाथों में वर्ल्ड -कप उठाए , शैम्पेन की झाग से भीगे चेहरे कितने उत्तेजक .अमी...

होता है शबो -रोज़ .....

दोस्तों, आज से मैंने चचा ग़ालिब के शेर को सामने रख अपना ब्लॉग शुरू किया है ."बाज़ीचए-अतफ़ाल है दुनिया मेरे आगे /होता है शबोरोज़ तमाशा मेरे आगे /"बच्चों का खेल ही है यह दुनिया और तमाशा शबोरोज़ क्या हर लम्हा होता है .आप सब को खुला निमंत्रण है के आप अपने विचार ,अपने कलाम और अपनी मुहब्बतें इस" होता है शबो -रोज़ ....." में दर्ज करें . आपका ही संजय कुमार कुंदन