देखना, रात को/ ख़्वाब में जाने-पहचाने-से/ कुछ तो चेहरे मिलें / देखना, रात को/ नींद की जुस्तजू में भटकते हुए/ ख़ुश्क साए मिलें/ देखना,रात की इस ख़मोशी के/ दरिया में गुम चंद आवाजों के / कुछ शिकस्ता(१) सफ़ीने(२) मिलें/ देखना,रात की छातियों से / टपकती हुईं शीर(३) की ऐसी बूँदें मिलें / जिनकी ख़ातिर तरसता हुआ/ कोई मासूम लब(४)/ अपने सीने में खुश्की सजाये हुए / कब फ़ना हो गया/ देखना,रात के स्याह और बेकराँ(५)/ इस समंदर में / कितने ही असरार(६) हों/ राज़ हों सैकड़ों / देखना,रात के इस शबिस्तान(७) में/ ख़्वाब की माशूक़ा/ अपने आशिक़ की हो मुन्तज़िर/ और सूरज की चौखट पे / दम तोड़ दे / देखना,देखना ,/ रात काला घुमड़ता हुआ / अब्र(८) है / देखना,रात में / मखमली-सी कोई इक / बुनावट भी है/ देखना ,रात के हैं हज़ारों तिलिस्म / जिनको हातिम कोई आए/ और तोड़ दे / देखना,रात में / कितनी गिरहें हैं / ग़ालिब के अशआर-सी/ जिनको खोलो तो / दीवान(९) तहरीर(10) हो / देखना, रात को / शायद ऐसा ही हो / एक ठंढी-सी ,शीतल-सी / कोई हवा/ आ के खिड़की के रस्ते से / हौले ज़रा / चूम ले तेरा चेहरा बड़े प्यार से / और लड़त...